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वक़्त के गुज़रते ही, बुरे दिन भी टल जाते हैं !,
मगर कितने ही लोग, दिल से निकल जाते हैं !
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निगाहों को न जाने किसकी तलाश है,
रात दिन उसको ही पाने की प्यास है !
न कोई नाता न कोई रिश्ता है उससे ,
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अपनी तो ज़िन्दगी का, बस फ़साना बन चुका है,
था दिल के क़रीब जो भी, वो बेगाना बन चुका है !
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पूछूँगा विधाता से मैं, कि ये कैसा मुकद्दर बना दिया,
न बचा था ठौर कोई, जो आँखों को समंदर बना दिया !
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जिधर देखता हूँ, बेरुखी का मंज़र दिखता है,
मुझे हर तरफ, #नफ़रत का समंदर दिखता है !
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मेरी चुप को, मेरी कमज़ोरी मत समझ लेना,
तुम अपने खयालात को, सच मत समझ लेना !
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किसी के वर्षों से टिके रिश्तों को, अहम् खा गया,
तो किसी को अपनी सौहरत का, टशन खा गया !
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कंकरीली राहों की कशक, आज भी ताज़ा है,
गरम रेत की वो तपिश, आज भी ताज़ा है !
फटी बिबाइयों का वो कशकता खामोश दर्द,
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हसीन राहों को देखा तो, बस चलता चला गया,
न कुछ सोचा न समझा, बस बढ़ता चला गया !
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यहां किसी को, किसी में भी दिलचस्पी नहीं,
लोगों के मुखड़ों पर, वो बात वो मस्ती नहीं !
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