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क्या दौर आया है #वक़्त का
यारो,
हरेक शख्स पर छाया, #मोहब्बत का बुखार मिलता है...
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उतार चढ़ाव तो हर शख्स की
#जिन्दगी में आता है....
जो #सम़झ सके इस बात को
वही #इन्सान कहलाता है...
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भूल जाओ
यारो, अपने हाथों की लकीरों को
खुद ही बनाना पड़ता है, अपनी तक़दीरों को
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गुलाब दिवस तू, रोज़ रोज़ क्यों नहीं आता
तू दुनिया को खुश रहना, क्यों नहीं सिखाता
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जब वक़्त अच्छा था, तो रिश्ते निखरते चले गए
जब ख़राब दौर आया, तो रिश्ते बिखरते चले गए
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उनके लिए #दिल को, जलाना हमें आता है
उनके दुःख दर्द को, अपनाना हमें आता है
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वक़्त के साथ, लोगों की फ़ितरत बदल जाती है
शौहरत के साथ, लोगों की चाहत बदल जाती है
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न चाहो इतना भी, मोहब्बतों से डरते हैं हम
ठीक हैं ज़माने से दूर,अदावतों से डरते हैं हम
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अपने बदनसीब का, मुझको गिला कुछ भी नहीं
पर मुश्किलों के सिवा, मुझको मिला कुछ भी नहीं
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आरज़ू थी मेरे दिल की, कि कोई न मुझसे रूठे !
इस ज़िन्दगी में अपनों का, कभी न साथ छूटे!
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