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किसी की जान, किसी का ऐतबार थे हम भी,
यारो कितने ही दिलों का, क़रार थे हम भी !
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मोहब्बतों में दिल, लुटाना मेरी आदत है,
हर दर्द को सीने में, छुपाना मेरी आदत है !
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ज़िन्दगी से क्या गिला, हमें ख़्वाहिशों ने मार डाला,
पिला कर जाम उल्फ़त का, साजिशों ने मार डाला !
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गुलशन में लगी आगों को, हम बुझाएं कैसे,
इन #मोहब्बत के परिंदों को, हम बचाएं कैसे !
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न हिन्दू होते न हम मुसलमान होते
काश हम एक अच्छे से इंसान होते
न आतीं गोलियों की बौछारें कहीं से
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ज़िन्दगी में कभी कांटे, तो कभी गुलाब मिलते हैं
कभी
मोहब्बतों के रंग, तो कभी अज़ाब मिलते हैं
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हमें परायों से नहीं, अपनों से डर लगता है
हमें तो सच से नहीं, सपनों से डर लगता है
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क्यों लिखते हो अय दोस्त, ये तराने
मोहब्बतों के ,
जब कि दिखते हैं हर तरफ, अब साये नफ़रतों के !
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