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ख्यालों में मेरे कभी आप भी खोये होंगे,
खुली आँखों से कभी आप भी सोये होंगे,
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वक़्त संभला, तो दुश्मन भी यार हो गए,
पर ख़ास अपनों के चेहरे, बेज़ार हो गए !
वो दोस्त हुआ करते थे कभी फाकों में,
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हर दस्तूर इस ज़
माने का, निभाया हमने,
मगर न पा सके वो यारो, जो चाहा हमने !
न आये कभी काम जिन्हें समझा अपना,
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इतना भी गु
मान न कर
अपनी जीत पर ऐ बेखबर
शहर में तेरी जीत से ज्यादा
चर्चे तो मेरी हार के हैं !!!
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यारो यूं नफरतें क
माने में क्या रखा है,
सब को दुश्मन बनाने में क्या रखा है !
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हम औरों की चाह में, ख़ुद को भुला बैठे !
इन झूठों के फरेब में, सच को भुला बैठे !
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न हिन्दू होते न हम मुसल
मान होते
काश हम एक अच्छे से इंसान होते
न आतीं गोलियों की बौछारें कहीं से
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मत समझो पत्थरों की दुनिया को सब कुछ,
गर तुमको देखनी है ज़िंदगी, तो गाँव चलिए !
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क्यों कर न जाने दिल के, ये तराने बदल गए
जो साधे थे कभी हमने, वो निशाने बदल गए
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