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हम तो उस आदमी को, यूं ही इंसान समझ बैठे,
उसकी मोहब्बत को ही, अपना ई
मान समझ बैठे !
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हैं करम उनके दोषी मगर, तक़दीर को दोष देते हैं
वो बोते हैं खुद बबूल मगर, जमीन को दोष देते हैं
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कहाँ से चले थे मगर कहाँ आ गए, हम संभलते संभलते
खुद को ही बदल डाला हमने, दुनिया को बदलते बदलते
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ये नाम किस के लिए, बदनाम किस के लिए,
ज़रा सी ज़िन्दगी है, अभि
मान किस के लिए !
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रूठे गर ज
माना भी, तो मना लेंगे हम,
भड़कते हैं शोले भी, तो बुझा देंगे हम !
अपनों का साथ हो तो ग़म कैसा यारो,
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उमड़ते हैं तूफ़ान दिल में, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ,
दर्द ही दर्द है ज़िन्दगी में, फिर भी मैं ख़ामोश हूँ !
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ज़रा सी ज़िन्दगी में, व्यवधान बहुत हैं ,
तमाशा देखने को, यहां इंसान बहुत हैं !
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खुली आँखों में गुज़र जाती हैं, हमारी रातें अक्सर ,
आँखों में समायी रहती हैं, यादों की बारातें अक्सर !
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न पूछो कि ज़िन्दगी ने, कितना रुलाया हमको,
कैसे खास अपनों ने, जी भर के सताया हमको !
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किसी की ज़िन्दगी, किसी को मिटाने का क्या हक़ है,
खुद की ख़ुशी के लिए, औरों को रुलाने का क्या हक़ है !
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