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खुशियों का दुश्मन, ज
माना क्यों बन बैठा !
जिसको भी चाहा, वही बेगाना क्यों बन बैठा !
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कैसे जियें, ये दर्दे दिल मुस्कराने नहीं देता,
कोई, ज़ज़्बात ए #मोहब्बत निभाने नहीं देता !
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हम तो तेरे दिल में फूल खिलाने चले आये
तेरे ग़मों को अपने दिल में बसाने चले आये
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रहना है इस शहर में, तो अपनी फितरत बदल डालो
#अजनबी शहर में, अपनी झूठ की इबारत बदल डालो
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देखते ही देखते, सितारे बदल जाते हैं !
हाथ में आकर, किनारे फिसल जाते हैं !
दोस्तो उलझनों का सागर है ज़िंदगी,
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लेते हैं हर चीज़ मेरी, अपना सा
मान समझ कर,
जब मांगते हैं हम, तो देते है अहसान समझ कर !
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इस #दिल में, मोहब्बत की शमा जलती रही ,
यादों का बोझ लिए, ये ज़िन्दगी चलती रही !
आता रहा जलजला ज़
माने भर का लेकिन,
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क्या क्या खोया क्या पाया, हमको कुछ भी याद नहीं !
किसने अर
मानों को कुचला, हमको कुछ भी याद नहीं !
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अपनी ज़िन्दगी हम, यूं ही बसर कर लेंगे,
अपने दिल में हम, उनके अज़ाब भर लेंगे...
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न जाने इस जुबां पे, वो दास्तान किसके हैं,
दिल में मचलते हुए, वो अर
मान किसके हैं ?
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