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गौर फरमाइए
उन्हों ने अर्ज़ किया
महफ़िल में हमारे जूते खो गए है
हम घर कैसे जायेंगे ?
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खुशियों की महफिल भी, कहर नज़र आती है
किसी की मीठी ज़ुबां भी, ज़हर नज़र आती है
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हम महफिल से जा रहे हैं, मोहब्बत को हार के
लम्हें न भूल पायेंगे, जो पहलू में बिताये यार के
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उनके बिन ये घर मेरा, वीरान बन कर रह गया
मेरे दिल का हर कोना, सुनसान बन कर रह गया
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अब कुछ कहने कुछ सुनने से डरता हूँ मैं
उनकी महफिल में भी जाने से डरता हूँ मैं
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हम भी कहते थे कभी ,
हर
महफ़िल के बाद तेरी याद आती है ,
मगर अब तो ये आलम है,,,,
जब भी आता है तेरा नाम ,
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अगर बिकी तेरी #दोस्ती,
तो पहले ख़रीददार हम होंगे..!
तुझे ख़बर न होगी तेरी क़ीमत,
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मेरी तो ज़िन्दगी का, बस इतना फ़साना है
राहों में कांटे हैं मगर, कुछ दूर और जाना है
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दोस्त साथ हो तो #रोने में भी #शान है...
#दोस्त ना हो तो #महफिल भी #श्मशान है...
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हम किसे कहें और कौन सुनेगा, हम कैसे बर्बाद हुए
कैसे गुज़रीं वो काली रातें, और दिन कैसे बर्बाद हुए
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