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सुन्न हो गयी हजारों आवाजें पुकारते पुकारते
अपलक रह गयी कितनी निगाहें,निहारते निहारते
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हर तरफ ख़ामोशी का मंजर था
मेरे दिल में किसी की याद का #समंदर था
मुझसे मिलने वीराने में निकली वो #नकाब पहन के
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#आँखों के सामने वो मँज़र आया है,
जिस पर #हमने अपना कद़म बढ़ाया है...
साथ जो तेरे माँ बाप का सारा है,
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आज फिर कही मर जाने को जी चाहता है,
आज फिर किसी को #रुला जाने को जी #चाहता है...
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न था कोई हिसाब बाक़ी मुझ पर उसका,
फिर भी मेरा सब कुछ वो चुरा कर ले गया |
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हमसे नफरतों का बोझ अब सहा नहीं जाता
हमसे अपनों के फरेबों में अब रहा नहीं जाता
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हम बदलते है तो निज़ाम बदल जाते है,
सारे मंजर, सारे अंजाम बदल जाते है,
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जिधर देखता हूँ, बेरुखी का मंज़र दिखता है,
मुझे हर तरफ, #नफ़रत का समंदर दिखता है !
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भैया कैसी तूने खबर सुनाई !
अब याद हमें तो नानी आई !
अब कैसे नोट ये बदले जाएँ,
चलो इन्हें अब आग दिखाएं,
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यारो ग़मों में भी मुस्कराना, बात छोटी नहीं !
गैरों को भी अपना बनाना, बात छोटी नहीं !
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