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हम तो उस आदमी को, यूं ही इंसान समझ बैठे,
उसकी मोहब्बत को ही, अपना ईमान समझ बैठे !
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उनका ख़याल दिल से, हम मिटा न पाए,
बहुत चाहा
भूलना मगर, हम भुला न पाए !
उनकी जफ़ाओं का है याद हमें हर लम्हां,
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ज़रा सी ज़िन्दगी में, व्यवधान बहुत हैं ,
तमाशा देखने को, यहां इंसान बहुत हैं !
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दुनिया की झूठी रिवायतें, तोड़ने की कोशिश में हूँ,
टूटे दिलों की ख्वाहिशें, मैं जोड़ने की कोशिश में हूँ !
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इससे पहले कि सनम, बेवफा हो जाएँ,
क्यों न उनकी ज़िंदगी से, जुदा हो जाएँ !
गर ख़ुशी मिलती है उन्हें हमारे बिना ही,
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हम तो अपनों को, अपना संसार समझ बैठे,
उन्हें ज़िन्दगी की नैया का, पतवार समझ बैठे !
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दुनिया के सारे ग़म को, दिल में समां लिया मैंने
एक फूल से दिल को भी, पत्थर बना लिया मैंने
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ख़ुशी से जीने के लिए, ज़रा सा प्यार काफी है
नहीं है चाह मिलने की, बस इंतज़ार काफी है
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कुछ कहने की कुछ सुनने की, हिम्मत न रही अब,
यूं हर किसी से सर खपाने की, हिम्मत न रही अब !
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जिधर देखता हूँ उधर, अँधेरा ही अँधेरा है !
न जाने कितनी दूर, मेरी रात का सवेरा है !
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