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मेरी ज़िंदगी ही अजीब है, और को क्या कोसना
जब ज़ख्म पाये अपनों से, गैरों को क्या कोसना
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खरगोश बम लेकर चिड़ियाघर में घुस गया,
:
और जोर से चिल्लाया :-
तुम सबके पास यहां से निकलने के लिए
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गुनाहों के शहर में, हर चेहरा अनजान सा दिखता है
इंसान की शक्लो सूरत में, इक शैतान सा दिखता है
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जिन पर लुटा दीं हमने, बिना हिसाब दौलतें
उन्होंने दो गज़ कफ़न भी, हमें नाप कर दिया
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जब
बदलता है वक़्त, लोग याराना
बदल देते हैं
जब दरकती हैं दीवारें, तो आशियाना
बदल देते हैं
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अब वो दुनिया नहीं, वो दुनियादारी नहीं
जो
बदल जाये, वो #किस्मत हमारी नहीं
कहने को सब कुछ अपना सा दिखता,
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लाख टके की बात –
कोई नही देगा साथ तेरा यहाँ,
हर कोई यहॉं खुद ही में मशगुल है
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कमाल है ना........
#आँखे किसी की #तालाब नहीँ,
फिर भी भर आती हैँ...
#दुश्मनी कोई #बीज नही,
फिर भी बोयी जाती है...
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कर लिए जतन इतने, अपने आप को
बदल के
फिर भी गुज़री #ज़िन्दगी, बस आसुओं में ढल के
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#मोहब्बत के चंद लम्हों से, ज़िंदगी का रुख़
बदल जाता है
एक चरमराई जिंदगी का, जीने का मकसद
बदल जाता है
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