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क्यों ख्वाहिश पाल रखी है किसी का प्यार पाने की
मत भूलो कि बड़ी ज़ालिम नज़र है इस जमाने की
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मेरी ज़िंदगी की गाड़ी, तनिक भी न हिल पायी है
मेरे अरमानों की बगिया, अभी तक न खिल पायी है
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फूलों की महक या कांटों की खरास लिखूँ
या अपनों से बिगड़ते रिश्तों की खटास लिखूँ
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पलकों के पीछे आँसुओं को छुपाना होता है
ज़बरदस्ती चेहरे
पर हंसी को लाना होता है
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हम तो किसी दिन कफन ओढ़ कर निकल जायेंगे
सारी रूसबाईयों को यहीं छोड़ कर खिसक जायेंगे
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लोग फूलों से प्यार करते है
पर काटों से मुंह चुराते हैं
फूलों की ज़िंदगी ही क्या वो तो जल्दी ही सूख जाते हैं
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खुद ही तय करते हैं मंज़िलें, रास्ता भी खुद बनाते हैं
जीते हैं अपनी शर्त
पर, अपनी दुनिया भी खुद बनाते हैं
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कभी वीरानों में भी फूल खिल जाते हैं
कभी गैरों में भी हमसफर मिल जाते हैं
कहीं किसी को कब्र नसीब नहीं होती
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दिल का प्रश्न :
मेरे इस प्यार में तुमने क्या कमी पायी है
क्यों मुझे बेज़ार करने की कसम खायी है
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जब तक सांस है किसी का सहारा मिल नहीं सकता
खुद ही तैरना होगा वरना किनारा मिल नहीं सकता
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