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जिन पर लुटा दीं हमने, बिना हिसाब
दौलतें
उन्होंने दो गज़ कफ़न भी, हमें नाप कर दिया
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ये दबदबा ये हुक़ूमत का मज़ा, हमेशा नहीं रहा करता
ये
दौलतों ये शोहरतों का नशा, हमेशा नहीं रहा करता
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कितना प्यार किया काया से वो यहीं पड़ी रह जायेगी
ये
दौलत और रिश्तों की ममता यहीं तलक रह जायेगी...
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बच के रहिये उनसे, जो दिलों में विष घोलते हैं
दिलों में नफ़रत, पर बाहर मीठी जुबां बोलते हैं
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ज़िन्दगी बिता दी मगर वो मोहब्बत नामिली
अपनों की बेरूखी से हमें कभी फुर्सत ना मिली
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बेवफाओं स वफ़ा की, ख्वाहिश भला क्या कीजे
उनके सामने दिल की, नुमाइश भला क्या कीजे
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कोई तो कुछ पा कर हँसता है,
तो कोई कुछ खो कर रोता है
कोई तो रातों को तारे गिनता,
तो कोई नींद चैन की सोता है
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बहुत ही जूनून था, हमें लोगों पर दया करने का
खुद को मिटा कर भी, उनका ही भला करने का
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हमें तो हर कदम पर, ग़मों का ज़हर पीना पड़ा है
जीने की चाहत है मगर, घुट घुट कर जीना पड़ा है
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जाने क्यों लोग, किसी का दिल तोड़ देते हैं,
अपनों से नाता तोड़ के, गैरों से जोड़ लेते हैं !
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