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क्यों लगी है आग सी आज इन हवाओं में
जल रहा है तन बदन आज इन फिज़ाओं में
दिल्लगी को प्यार समझ बैठे हम उनका
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तन्हाईयों की ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती
उनके बिना भीड़ भी अच्छी नहीं लगती
आदत नहीं मुझे उनके बिन रहने की,
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मैं तो इस दुनिया की, खुराफ़ात से डरता हूँ
अब तो मैं #
दिल्लगी की, हर बात से डरता हूँ
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हर #रात के बाद भी, एक #सुबह होती है,
फूटी #किस्मत में भी लिखी, #तक़दीर होती है!
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मुझे तो हर तरफ, सिर्फ अँधेरा नज़र आता है,
ज़िंदगी का हर रंग, अब बदरंग नज़र आता है !
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