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बिना रंजोगम के, ज़िन्दगी का मज़ा क्या होता
अगर न होती हार, तो जीत का मज़ा क्या होता
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कुछ तो मेरी मोहब्बत का, सिला दीजिये
नफ़रत है तो फिर, खाक में मिला दीजिये
बस चाहत है कि कर लो इज़हारे मोहब्बत,
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साजिशों की दुनिया में, सिर्फ चेहरे बदलते हैं!
हम जिधर भी जाते हैं, दुश्मन साथ चलते हैं!
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आफतों ने ज़िन्दगी को, इस कदर तोड़ दिया
कि ज़माने ने चाहा जिधर, उसे उधर मोड़ दिया
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आरज़ू थी मेरे
दिल की, कि कोई न मुझसे रूठे !
इस ज़िन्दगी में अपनों का, कभी न साथ छूटे!
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ये
दिल हमारा इस कदर, यूं फटा न होता
अगर ये अपनों के फेर में, यूं फंसा न होता
कुछ तो कुसूर है अपना पिछले जनम का,
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कभी कभार ज़िन्दगी, हमें आँख दिखा देती है
पर उसकी ये धमकी, हमें जीना सिखा देती है
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न गिरो नीचे इतना, कि निकलने में मुश्किल होगी !
जब होंगे जुदा दो
दिल, तो मिलने में मुश्किल होगी !
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हमने तो हर वक़्त, तेरी हर बात मानी थी
तुमने दिन को रात कहा, तो रात मानी थी !
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कभी ख्वाहिशों ने, फंसाया ज़िन्दगी को
तो कभी ज़रूरतों ने, रुलाया ज़िंदगी को !
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