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किस को हकीकत कहें, किस को वहम समझें
किस को कमतर कहें, किस को अहम समझें
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तुम मुझे खुशियों के वो पल दोबारा दे दो
मेरी डूबती नैया को ज़रा सा सहारा दे दो
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क्या गुज़री है दिल पर, कौन समझता है
किसी और का
दर्द , भला कौन समझता है
खो गए गमों की भीड़ में मेरा #नसीब था,
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दूसरों का #वक्त बर्बाद करके,
ये #जमाना अपना वक्त काटता है
मगर इन खुदगर्ज़ लोगों में कोई ऐसा भी है
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मेरी चाहतों को, इस कदर ठुकराने वाले
मेरे
दर्द े ज़िगर को, हंसी में उड़ाने वाले
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दुख कभी सुख का, इंतज़ार नहीं करता
दर्द कभी मरहम का, इंतज़ार नहीं करता
जो दिया इस #जिंदगी ने प्यार से लेलो
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Dard ko bhi us waqt dard hota hoga
Aansuon ka bhi aksh us waqt rota hoga
Gehrate honge zakhmo ke bhi zakhm us ghadi
Jab zikr us bewafa dil ka hota hoga...
दर्द को भी उस वक़्त
दर्द होता होगा
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बेताब से रहते हैं उसकी याद में अक्सर,
रात भर नहीं सोते हैं उसकी #याद में अक्सर,
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न कुछ भी उनका क़ुसूर था, न कुछ मेरा क़ुसूर था
पर जब देखा दिल में झांक कर, वो तो मेरा गुरूर था
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ऐ #खुदा तूने एक पल खुशी का दिया तो होता,
कभी मेरे #सपनो को सच होने दिया तो होता...
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