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जहाँ जुबां चुप रहती है, आंसू बयाँ कर जाते हैं
वो बहते बहते भी,
दर्द ए दिल बयाँ कर जाते हैं
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हर किसी को अपना दोस्त बनाया नहीं जाता
हर किसी को
दर्द ए दिल सुनाया नहीं जाता
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एक हद के बाद,
दर्द भी दवा बन जाता है
एक हद के बाद, झूठ भी सच बन जाता है
यही है असलियत जिंदगी की,
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उल्फ़त के मारों से, मेरी दास्तां मत कहना
कभी तलबगारों से, मेरी दास्तां मत कहना
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मुस्कान तो देखी मगर, दिल का बबंडर नहीं देखा
चेहरे की चमक देखी, पर मन के अंदर नहीं देखा
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कहने को ज़िंदा हूँ, पर अपनों से दूर हूँ मैं
अपने हालात से, न जाने क्यों मजबूर हूँ मैं
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वो रात
दर्द और सितम की रात होगी
रूक्सत जिस रात उनकी बारात होगी
नींद से उठ जाता हूँ अक्सर मै यह सोचकर
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जाने क्यों वो मेरे खयालों में चले आते हैं
रिसते हुए ज़ख्मों को कुरेदने चले आते हैं
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वो दुनिया के सामने, अपना
दर्द तो सुनाते रहे
पर हमारे बदहाल पर वो, हमेशा मुस्कराते रहे
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क्या उनके लबों ने कभी मेरा गीत गुनगुनाया होगा
क्या किसी के पूछने पर उसने मेरा नाम बताया होगा
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