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बिना रंजोगम के, ज़िन्दगी का मज़ा क्या होता
अगर न होती हार, तो
जीत का मज़ा क्या होता
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ये दिल हमारा इस कदर, यूं फटा न होता
अगर ये अपनों के फेर में, यूं फंसा न होता
कुछ तो कुसूर है अपना पिछले जनम का,
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कभी कभार ज़िन्दगी, हमें आँख दिखा देती है
पर उसकी ये धमकी, हमें
जीना सिखा देती है
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न गिरो नीचे इतना, कि निकलने में मुश्किल होगी !
जब होंगे जुदा दो दिल, तो मिलने में मुश्किल होगी !
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चढ़ते हुए सूरज को, सभी झुक कर सलाम करते हैं
मगर जब डूब जाता है वो, तो घर पे आराम करते हैं
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खुशियों का दुश्मन, जमाना क्यों बन बैठा !
जिसको भी चाहा, वही बेगाना क्यों बन बैठा !
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हमें तो हर कदम पर, ग़मों का ज़हर पीना पड़ा है
जीने की चाहत है मगर, घुट घुट कर
जीना पड़ा है
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यारो कैसा ये इत्तेफ़ाक़ है, ये कैसा नसीब है,
होता है वही दूर, जो होता दिल के करीब है !
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किसी से मोहब्बत हम, निभाएं तो कैसे निभाएं
हर तरफ हैं कांटे, खुद को बचाएं तो कैसे बचाएं
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जब कोई काण्ड हो जाए
दूसरों के माँ बाप :-
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