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पत्थर की है ये दुनिया, यहाँ जज्बातों की कदर नहीं
दिल में मेरे तूफान मचा है, इसकी किसी को #खबर नहीं
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जिनके लिये दुनिया में, हम बदनाम हो गये
उनके दिल की हर बात पर, कुर्बान हो गये
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#आँखों के सामने वो मँज़र आया है,
जिस पर #हमने अपना कद़म बढ़ाया है...
साथ जो तेरे माँ बाप का सारा है,
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ख़िज़ाँ के फूल में रंग अभी बाक़ी है
उम्र ढल चुकी उमंग अभी बाक़ी है
हसरतें न हो सकीं पूरी तो क्या हुआ
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कमाल है ना........
#आँखे किसी की #तालाब नहीँ,
फिर भी भर आती हैँ...
#दुश्मनी कोई #बीज नही,
फिर भी बोयी जाती है...
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ये दिल हमारा इस कदर, यूं फटा न होता
अगर ये अपनों के फेर में, यूं फंसा न होता
कुछ तो कुसूर है अपना पिछले जनम का,
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पानी को बर्फ में बदलने में वक्त लगता है,
ढले हुए सूरज को निकलने में वक्त लगता है....
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ये तो अच्छा हुआ कि
1947 में #WhatsApp और #Facebook नहीं था,
वरना आज़ादी के लिए कोई जंग में उतरता ही नहीं,
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चलो हंसने की कोई, हम वजह ढूंढते हैं,
जिधर न हो कोई ग़म, वो जगह ढूंढते हैं !
बहुत उड़ लिए ऊंचे आसमानों में यारो,
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अब इस भीड़ में घुटता है दम, चलो कहीं और चलें,
ढूंढनी है सर-सब्ज़ फ़िज़ा, तो चलो कहीं और चलें !
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