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ज़रूरत नहीं है, किसी को भी ज़ख्म दिखाने की
बड़ी ही दिल फरेब है नज़र, ज़ालिम ज़माने की
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दिल के #दर्द न जाने क्या क्या बयाँ कर जाते है,
कभी #खामोश #चेहरा तो कभी #अल्फाज़ बयाँ कर #जाते है...
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अपने ज़ख्मों को, सबसे छुपा कर देख लिया हमने
लबों पर झूठी मुस्कान, दिखा कर देख लिया हमने
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वक्त नूर को बेनूर कर देता है,
छोटे से जख्म को नासूर कर देता है...
कौन
चाहता है अपने से दूर होना,,,
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तमन्ना है मेरी कि, उनका गुनहगार बन जाऊं
उनके #गुलशन का, गुल न सही खार बन जाऊं
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ऐ #दोस्त..! अब तू ही बता
तुझे ऐसा करने की #जरुरत क्या थी ?
#
चाहते तो हम भी खोल देते, #किताब अपने #दिल की....
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मजबूर थे जो #मोहब्बत हम ज़ता न सके,,,
#ज़ख्म खाते रहे मगर किसी को बता न सके...
चाहतों की हद तक #
चाहा उनको यारो,,,
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मौत के बाद का, मेरा तज़ुर्बा बड़ा अजीब था
दुश्मन भी कह रहा था, मेरा बड़ा अज़ीज़ था
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हम तो उनकी अदाओं को, उनका प्यार समझ बैठे
हम उनकी शराफत को, उनका इज़हार समझ बैठे
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यूँ ना कुरेदो मेरे #दिल को...
इसका घाव बहुत #गहरा है !
किसी की #
चाहत का है बसा...
इसमें #प्यार बहुत गहरा है !
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