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हमने तो निभाये हैं रिश्ते दिल से,
लोग तो रस्म निभा कर
चले जाते हैं
हमने तो ज़ख्म खाये हैं दिल पर,
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कभी वो हमारे करीब से, फ़िज़ा महका के
चले गये
कभी हम तड़प कर झांकने, उनकी गली में
चले गये
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मेरे अरमानों की, होली जला कर
चले गये
मेरी वफा को वो, ठोकर लगा कर
चले गये
मैने हज़ार मिन्नतें कीं उनसे,
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दूल्हों की मंडी सजा रखी है खरीदने वाले
चले आइये
हर किस्म के दूल्हे मिलते हैं अपना #नसीब आज़माईये
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दिल का प्रश्न :
मेरे इस प्यार में तुमने क्या कमी पायी है
क्यों मुझे बेज़ार करने की कसम खायी है
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शमा जलाती है, फिर भी परवाने
चले आते हैं
दुनिया सताती है, फिर भी दीवाने
चले आते हैं
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सपनों की दुनिया में हम खोते
चले गए,,,
मदहोश न थे पर #मदहोश होते
चले गए...
ना जाने क्या बात थी उस #चेहरे में,,,
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जाने क्यों वो मेरे खयालों में
चले आते हैं
रिसते हुए ज़ख्मों को कुरेदने
चले आते हैं
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जाने क्यों तुम मेरे ख्वाबों में
चले आते हो
सोये हुए दर्द को फिर जगाने
चले आते हो
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किसी के हुस्न का जल्वा, कब तक
चलेगा क्या पता
जब ढल जायेगा यौवन, तब क्या बचेगा क्या पता
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