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कभी ग़म तो कभी तन्हाई मार गयी,
कभी याद आ कर उनकी #जुदाई मार गयी,
बहुत टूट कर चाहा जिसको हमने,
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रूठे गर जमाना भी, तो मना लेंगे हम,
भड़कते हैं शोले भी, तो बुझा देंगे हम !
अपनों का साथ हो तो ग़म कैसा यारो,
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दुनिया में किसी का कोई, ग़म बंटाने नहीं आता,
कोई लफ़्ज़ों का मरहम भी, अब लगाने नहीं आता !
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दिल के तूफ़ान को, होठों तक ज़रा आने तो दीजिये,
ग़मों के काले बादलों को, दूर ज़रा जाने तो दीजिये !
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बड़ी ही शिद्दत से रिश्ता, उनसे निभाया हमने,
उनके हर दर्द को, अपने #दिल से लगाया हमने !
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मज़ाक लगता है लोगों को, अब तो मेरा रोना भी,
सबसे बड़ी खता है मेरी, मेरा बदनसीब होना भी !
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यूं ज़िन्दगी को, समझने से तुम्हें क्या मिलेगा,
उस से खामखा, उलझने से तुम्हें क्या मिलेगा !
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कभी सपनों को सजाने में, उम्र गुज़र जाती है,
कभी रिश्तों को बचाने में, उम्र गुज़र जाती है !
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उसका अक्स दिल से, अब तक न हटाया हमने,
ज़ालिम बेवफ़ा को, अब तक ना भुलाया हमने !
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माथे की सलवटों से, ग़मों को हटाना सीखो !
खुश रहो खुद भी व, औरों को हँसाना सीखो !
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