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जाते जाते भी तो वो, हज़ार ग़म दे गया हमको,
यूं ही मर मर के, जीने की #कसम दे गया हमको !
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एहसान करके जताना, ज़रूरी नहीं होता,
#चाहत है कितनी बताना, ज़रूरी नहीं होता !
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किसी को आखिर हम भुलाएँ कैसे,
किसी को बे सबब हम रुलायें कैसे !
झूठे सपने दिखाना नहीं आता हमें,
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चेहरे पे ग़म, दिल में रुसबाइयां दे गया कोई !
जाते जाते भी, आँखों में रुलाइयां दे गया कोई !
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कुछ अलग से, काम करने की आदत है हमें,
हर ज़ुल्म को, हंस के सहने की आदत है हमें !
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आदमी के तजुर्बों की, एक किताब है ज़िन्दगी,
उसकी ख़ुशी और ग़मों का, हिसाब है ज़िन्दगी !
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दिल के जज़्बात मैं, ज़माने को जता देता हूँ,
दिल की हर एक बात, यारों को बता देता हूँ !
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हम तो उस आदमी को, यूं ही इंसान समझ बैठे,
उसकी मोहब्बत को ही, अपना ईमान समझ बैठे !
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यारा कहाँ गयी वो बात, वो ज़िंदा दिली तेरी
कैसे हुई ग़मों से बोझिल, प्यारी सी हंसी तेरी
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कहाँ से चले थे मगर कहाँ आ गए, हम संभलते संभलते
खुद को ही बदल डाला हमने, दुनिया को बदलते बदलते
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