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गर मुझे मुकद्दर पे ऐतबार है तो तेरी वजह से
घर का गुलशन गर गुलज़ार है तो तेरी वजह से
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ना जाने क्यों तूँ मुझसे जुदा है
क्यों आँखों से आंसू जुड़ा है
तूँ रूठी है ,या रूठा
खुदा है
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#हवा के रुख को कोई #बदल नही सकता,
#सूरज के #ताप को कोई सह नही सकता...
कर ले चाहे कोई कितने ही बदलावों की कोशिशें,
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मैं अभी तक समझ नहीं पाया
तेरे इन फैसलो को ऐ
खुदा,.
उसके हक़दार हम नहीं
या हमारी दुआओ में दम नहीं !!!
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बहुत ही जूनून था, हमें लोगों पर दया करने का
खुद को मिटा कर भी, उनका ही भला करने का
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इक वो बदनसीब, जिसका कोई चाहने वाला नहीं,
इक वो दीवाना, जिसका कोई दीवाना नहीं
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ज़िन्दगी से उलझने से क्या फायदा
दुनिया को समझने से क्या फायदा
बदली है #दुनिया तो तू भी बदल जा
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न चाहो इतना भी, मोहब्बतों से डरते हैं हम
ठीक हैं ज़माने से दूर,अदावतों से डरते हैं हम
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खुदा ने कैसा मंज़र दिखाया हे,
बेवफाई का आलम छाया है,
चलेगे फिर कभी #मोहब्बत की राहों पर,
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हमने तो हर वक़्त, तेरी हर बात मानी थी
तुमने दिन को रात कहा, तो रात मानी थी !
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