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अपने वज़ूद को ही, अंधेरों में छुपा लिया हमने
कमज़ोर दिल को, इक पत्थर बना लिया हमने
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दिखा आज कुछ ऐसा यारों,
क्या, वो दिलकश #नज़ारा था...
मिला राह में फिर से मुझको,
एक #हमनशी का ज़नाजा था..
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किस को हकीकत कहें, किस को वहम समझें
किस को कमतर कहें, किस को अहम समझें
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कोई रो रहा है यहाँ, तो कोई हंस रहा है
कोई किसी पर, विषैले तंज़ कस रहा है
कोई बुन रहा है बैठ कर फरेबों के जाल,
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कर लिए जतन इतने, अपने आप को बदल के
फिर भी गुज़री #ज़िन्दगी, बस आसुओं में ढल के
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अय #ज़िन्दगी तू ही बता, तेरा क्या हवाल है
गर पूंछना है तो तू पूंछ ले, तेरा क्या सवाल है
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आज फिर कही मर जाने को जी चाहता है,
आज फिर किसी को #रुला जाने को जी #चाहता है...
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इस वक़्त के आगे कोई नहीं टिकता
जमीं तो क्या आसमां भी नहीं टिकता
वही करता है जो मन में है उसके,
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पा जाते सब कुछ यूं ही अगर,
तो मेहनत की अहमियत क्या होती
ना देता ख़ुदा गर भूख हमें,
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पैर की मोच और छोटी सोच,
हमें आगे बढ़ने नहीं देती ।
टुटी कलम और औरो से जलन,
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