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हर तरफ ख़ामोशी का मंजर था
मेरे दिल में किसी की याद का #समंदर था
मुझसे मिलने वीराने में निकली वो #नकाब पहन के
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उनके सारे ग़मों को, दिल में सजा लिया हमने
अपने मोम से #दिल को, पत्थर बना लिया हमने
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एक क़तरा आँसू भी, उनसे बहाया न गया
किसी खौफ से, अपना मुंह उठाया न गया
मेरी #मौत पर भी वो हौंसला न जुटा पाये,
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ग़मों के तूफ़ान भी, टकरा कर चले जाएंगे
हम तो इक दरिया हैं, यूं ही बहते चले जाएंगे
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उनकी यादें ऐसी कि, दिल से मिटा भी नहीं सकते
दिल मांगता है वही, जो उसे दिला भी नहीं सकते
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मन को भा जाए अगर, तो ज़रा सी बात काफी है,
ज़िन्दगी जीने के लिए, अपनों का साथ काफी है !
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रंगा है उनका खंज़र भी, मेरे ही खून से !
कर गए वो क़त्ल मेरा, बड़े ही सुकून से !
नहीं था पता कि क़ातिलों की गली है ये,
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जिधर देखता हूँ, बेरुखी का मंज़र दिखता है,
मुझे हर तरफ, #नफ़रत का समंदर दिखता है !
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जो चलाते हैं खंज़र, भला उनका क्या जाता है ,
देख कर दर्द औरों का, उनको तो मज़ा आता है !
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शायद अब #दुश्मन भी मुरीद हैं हमारे,
जो वक़्त-बेवक़्त हमारी ही चर्चा किया करते हैं,
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