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हैं करम उनके दोषी मगर, तक़दीर को दोष देते हैं
वो बोते हैं खुद बबूल मगर, जमीन को दोष देते हैं
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एक
आदमी पहली बार ससुराल गया,
उसकी सास ने उसे 7 दिन तक
सुबह-शाम पालक का साग खिलाया।
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औरों के लिए बुनता है, कपट का जाल
आदमी,
मगर खुद ही फंस कर होता है, बेहाल
आदमी !
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मज़ाक लगता है लोगों को, अब तो मेरा रोना भी,
सबसे बड़ी खता है मेरी, मेरा बदनसीब होना भी !
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जो भी आता है, वो जीने का हुनर बता जाता है,
ज़िन्दगी के हर पहलू पर, उपदेश सुना जाता है !
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जो अपनों का न हुआ, वो भला गैरों का क्या होगा,
जो जमीं का न हुआ, वो आसमानों का क्या होगा !
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बिना मतलब, कोई किसी का साथ नहीं देता,
कोई भी बिना लूटे, किसी को खैरात नहीं देता !
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ये अजीब सा ही, मौसम हो चला है आज कल ,
आदमी का धीरज, ख़त्म हो चला है आज कल !
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चोर (बन्दूक तानते हुए): ज़िन्दगी चाहते हो
तो अपना पर्स मेरे हवाले कर दो।
आदमी: यह लो।
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ढूंढते हैं जिसे हसरतों से, वो प्यार नहीं मिलता,
खार मिलते हैं मगर, गुले गुलज़ार नहीं मिलता
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