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तूने नफ़रत से जो देखा है तो याद आया,
कितने #रिश्ते तेरी ख़ातिर यूँ ही तोड़ आया हूँ,
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यारो कैसा ये इत्तेफ़ाक़ है, ये कैसा नसीब है,
होता है वही दूर, जो होता दिल के करीब है !
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कुछ अलग से, काम करने की आदत है हमें,
हर ज़ुल्म को, हंस के सहने की आदत है हमें !
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फुर्सत नहीं किसी को भी हमारे पास आने की
बदल दी हैं सबने निगाहें लानत है ज़माने की
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हमें कुछ उलझी बातो को
जहन मे ही दफन करना होता है
लेकिन इंसान जज़्बातो को ही दफन कर देता है,
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झूठी दिलासा से, गम कभी कम नहीं होते,
बाद मरने के भी, ये झंझट कम नहीं होते !
ज़रा रखिये खोल कर अपनी
आँखे ज़नाब,
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घर बैठे कभी फूल, मुस्कराने नहीं आते,
बिन ख़ुशी, मोहब्बत के तराने नहीं आते !
नफ़रत को उजड़ा हुआ आशियाँ समझो,
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सब कुछ लुटा कर, कुछ मिला तो क्या मिला,
अरे इज़्ज़त गवां कर, कुछ मिला तो क्या मिला !
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गर सताएं उनकी यादें, तो क्या करूँ,
गर चाहूँ उनसे मिलना, तो क्या करूँ!
हो सकती है मुलाक़ात ख्वाबों में बस,
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मोहब्बतों में दिल, लुटाना मेरी आदत है,
हर दर्द को सीने में, छुपाना मेरी आदत है !
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