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जिंदगी का मेला अब उखड़ता सा जा रहा है
कल तक थी रौनक अब उजड़ता जा रहा है
कितने लोग आये थे गये थे कुछ पता नहीं
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कोई तो
अपने घर पर सोये, कोई सड़कों पर रैन गुजारे
ये भी कैसा नसीब है
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अपने मतलब के लिये लोग, कितना बदल जाते हैं
वे अपनों को पीछे धकेल कर, आगे निकल जाते हैं
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वो हमारी जान भी लेलें तो कोई बात नहीं,
अगर हम मुंह खोलें तो हंगामा
वो झूठ की महफिल सजाएं तो कोई बात नहीं,
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अपने प्यार का अशियाना, कभी हमने भी सजाया था
उसके ज़र्रे ज़र्रे ने फक़त, मोहब्बत का गीत गाया था
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हम उजड़े हुए दिल को, चमन बनाने से डरते हैं
अपने मन के उपवन में, फूल खिलाने से डरते हैं
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गलत कहते हैं लोग कि, खुदा तकदीरें बनाता है
वो तो भाग्य के पटल पर, सिर्फ लकीरें बनाता है
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सज्जन दौड़ रहा है इज़्ज़त बनाने के लिये
तो दुर्जन दौड़ रहा है कुचक्र चलाने के लिये
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मैने सभी रिश्तों को बड़े जतन से निभाया था
अपनों के दिलों को
अपने दिल से मिलाया था
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मैं क्यों किसी के कहने से अपनी आवाज़ बदल डालूं
मैं क्यों किसी के कहने से अपना अन्दाज़ बदल डालूं
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