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ज्यादातर पत्नियाँ
अपने पति की बहनों को प्यार से नहीं देखती,
जबकि सारे पति
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अपने बदनसीब का, मुझको गिला कुछ भी नहीं
पर मुश्किलों के सिवा, मुझको मिला कुछ भी नहीं
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ना पूछिये कि ये ज़िन्दगी कैसे गुज़री
हमारी वो सहर ओ शाम कैसे गुज़री
मुद्दत गुज़र गयी यूं डूबते उछलते
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यूँ ना समझो देश को स्वाधीनता यूँ ही मिली है
हर कली इस बाग़ की कुछ खून पीकर ही खिली है
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चढ़ते हुए सूरज को, सभी झुक कर सलाम करते हैं
मगर जब डूब जाता है वो, तो घर पे आराम करते हैं
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किसी से मोहब्बत हम, निभाएं तो कैसे निभाएं
हर तरफ हैं कांटे, खुद को बचाएं तो कैसे बचाएं
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हम तो तेरे दिल में फूल खिलाने चले आये
तेरे ग़मों को
अपने दिल में बसाने चले आये
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अपने दर्दे दिल से अब सिहरने लगा हूँ मैं
खुद की ही खोदी कब्र में गिरने लगा हूँ मैं
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बड़ा ज़ुर्म करता हूँ कि, मैं ख्वाब देखता हूँ !
दिल के टूटे टुकड़ों का, मैं हिसाब देखता हूँ !
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कितने मतलबी हैं हम, कि अपना ही घर देखते हैं !
गर जलता है घर किसी का, तो
अपने हाथ सेकते हैं !
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