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जब कभी बादल, मेरे आँगन पे गरजते हैं,
तब तब उनकी यादों के, साये लरजते हैं !
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अपने को अब भाती नहीं, शरारत किसी की,
अब तो
समझ आती नहीं, इबारत किसी की !
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खुद अपने ही दीये ने, अपना घर जला दिया ,
समझा जिसे दिल, उसने ही दिल जला दिया !
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ऐ दिल तू हर किसी से, इतना प्यार मत कर,
मस्त है ये दुनिया किसी का #इंतज़ार मत कर !
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मैंने तो
समझा कि, दर्द बंटाने आया था,
लगा कि दुःख में, साथ निभाने आया था !
दिखाए थे ज़ख्म सारे मरहम की आस में,
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कान्धे पर लिये झोला जाने लगे बाजार
लाना था घर के लिए सब्जी भाजी अचार।
तभी श्रीमती जी आईं देख मुझे इठलाईं
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ये रात गुज़र जाए तो चले जाइएगा,
न रहे कोई अरमां तो चले जाइएगा !
बहुत बेचैन रहता है ये नादान दिल,
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रह के भी साथ उनके, न
समझ पाए हम,
दिल की कालिखों को, न परख पाए हम !
भला क्या करें हम उस से गिला शिकवा,
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हम कोई अकेले नहीं, परेशान और भी हैं,
अभी तो देखा है क्या, मुकाम और भी हैं !
न
समझो कि गुज़र गए फरेबों के दिन,
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ग़मों का आलम, बदलते भी देर नहीं लगती,
खुशियों के रंग, बिगड़ते भी देर नहीं लगती !
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