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रहना है इस
शहर में, तो अपनी फितरत बदल डालो
#अजनबी
शहर में, अपनी झूठ की इबारत बदल डालो
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कैसे कह दूं कि #महंगाई बहुत है...
शहर के चौराहे पर
आज भी एक रूपये मे
कई दुआएँ मिलती है...॥
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जिन्दगी की कशमकश ने, चाहतों को मार डाला,
धूप की इस तपिश ने, ठंडी हवाओं को मार डाला !
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दिल को मनाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है,
किसी को भुलाने में, ज़रा मुश्किल तो होती है !
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ज़रा सी ज़िन्दगी में, व्यवधान बहुत हैं ,
तमाशा देखने को, यहां इंसान बहुत हैं !
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इससे पहले कि सनम, बेवफा हो जाएँ,
क्यों न उनकी ज़िंदगी से, जुदा हो जाएँ !
गर ख़ुशी मिलती है उन्हें हमारे बिना ही,
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जो चलाते हैं खंज़र, भला उनका क्या जाता है ,
देख कर दर्द औरों का, उनको तो मज़ा आता है !
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चाहे दरकीं हैं दीवारें, मगर घर अभी बाक़ी है
हालात बदले हों भले ही, असर अभी बाक़ी है
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कागज़ पे लिखी गज़ल,
बकरी चबा गयी !
चर्चा पूरे
शहर में हुई,
कि बकरी शेर खा गयी !!!
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दुनिया के दिए ज़ख्मों के, निशान अभी बाकी हैं,
हम जी रहे हैं इसलिए कि, अरमान अभी बाकी हैं !
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