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ख़ुदा बड़ा अज़ीब है, कैसे
रिश्ते बना देता है
देखा न था जिसको कभी, अपना बना देता है
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दोस्ती की इमारत भरोसे पर खड़ी होती है
दुनिया के हर
रिश्ते से #दोस्ती बड़ी होती है
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ये शीशा ये सपना ये ज़िंदगी की डोर
कब टूट जाएं ये किसको पता है
मोहब्बत के दरिया में ज़फ़ा की कस्ती
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मुसाफिर हूँ दोस्तो, अपनी राह चला जाऊँगा
अकेला था सफर में मैं, अकेला चला जाऊँगा
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रिश्तों के टूट जाने से अरमान बिखर जाते हैं
जिंदगी की दौड में यूं ही कदम ठहर जाते हैं
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इतनी रिसर्च हुई आज तक
पर कोई भी यह नहीं पता लगा पाया
:
कि जब
रिश्तेदारों से चाय के लिए पूछते हैं तो
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मेरे सूने उपवन को फिर से बहारें दे दी तूने
मायूस दिलों को खुशियों की फुहारें दे दी तूने
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अपनों से ज़िंदगी में, जब बेहाल हो गये
हर तरफ से हम, जब फटे हाल हो गये
तलाश लिया ठिकाना हमने अंधेरों में,
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हर ग़म से गुज़रा हूँ, अब खुशियों का इंतज़ार नहीं
अब तक ज़िंदा हूँ मगर, अब जीने की दरकार नहीं
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आज कल मुस्कराने का, कोई आधार नहीं मिलता
किसी को कैसे कहें अपना, वो आधार नहीं मिलता
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