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कहीं बैठ के कोने में, मैं रोना चाहता हूँ ,
ग़मों को आंसुओं से, मैं धोना चाहता हूँ !
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भला मुर्दों के शहर में, ज़िन्दगी का असर क्या होगा,
बनावट के इन मेलों में, सादगी का असर क्या होगा !
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ख़ुद ही काँटों भरे ये रास्ते, हम बनाते क्यों हैं,
यारो पत्थर दिलों से रिश्ते, हम निभाते क्यों हैं !
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वो आये थे मेरे घर पे, मगर बदनाम कर गए !
वो न जाने कितनी तोहमतें, मेरे नाम कर गए !
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कभी भी जीत पे अपनी, फड़कना मत
यारो,
कभी भी हार पर अपनी, भड़कना मत यारो !
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शरीफ़ों को दुनिया में, अब इज़्ज़त नहीं मिलती,
मुफ़्त में किसी को, अब मोहब्बत नहीं मिलती !
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अपनी ज़िन्दगी ने, कितने ही बवाल देखे हैं !
जो थे कभी अपने, उनके भी कमाल देखे हैं !
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दौर ए गर्दिश का असर, कब तक रहेगा
यूं ही उलझनों का सफर, कब तक रहेगा
कभी तो टूटेगा आदमी का हौसला
यारो,View Full
हर दस्तूर इस ज़माने का, निभाया हमने,
मगर न पा सके वो
यारो, जो चाहा हमने !
न आये कभी काम जिन्हें समझा अपना,
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उनका तो आज भी, इंतज़ार है हमको ,
उनसे आज भी बेपनाह, #प्यार है हमको !
इक दिन तो जरूर आएंगे लौट कर वो,
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