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मानवता का सच्चा #सेवक
वह पुरुष है जो
इस घनघोर प्रतिस्पर्धा के दौर में भी...
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जग में ऐसे लोग भी हैं, दिल में उजियारा कर जाते हैं
कुछ अपनी दी चोटों से, मन में अंधियारा भर जाते हैं
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शर्म से क्या शर्
माना यारों,
शर्म तो शर्म वाले को आती है...
हम तो इतने बेशर्म हैं कि..........
शर्म
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ज़रूरत नहीं है, किसी को भी ज़ख्म दिखाने की
बड़ी ही दिल फरेब है नज़र, ज़ालिम ज़
माने की
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ऐ दोस्त सुना है कि,,,
खुदगर्जी का ज़
माना है....
यहाँ हर कोई #मोहब्बत का दीवाना है...
कोई दिल, तो कोई सूरत
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लौट जाओ अपनी दुनिया में, जहाँ सब कुछ तुम्हारा है
जो दिख रहा है तुझको आगे, एक छलावा है शरारा है
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तमन्ना है मेरी कि, उनका गुनहगार बन जाऊं
उनके #गुलशन का, गुल न सही खार बन जाऊं
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अगर बिकी तेरी #दोस्ती,
तो पहले ख़रीददार हम होंगे..!
तुझे ख़बर न होगी तेरी क़ीमत,
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मेरी तो ज़िन्दगी का, बस इतना फ़साना है
राहों में कांटे हैं मगर, कुछ दूर और जाना है
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जिधर देखो दुनिया में, बस दिखता है आदमी
फिर भी क्यों तन्हा सा, यहाँ दिखता है आदमी
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