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ज़िंदगी से अब कोई उम्मीद नज़र नहीं आती
संभलने की अब कोई तदबीर नज़र नहीं आती
ज़नाजा तो उठना है एक दिन ज़रूर
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जैसा मुकद्दर ने चाहा, हम उधर चल दिये
कई बार गिरे फिर भी, उठ कर चल दिये
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दुश्मन हूँ तेरा, तो दिल जलाने के लिये मिल
तू एक बार फिर से, मुझे रुलाने के लिये मिल
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#खुद ही #रोये और रोकर #चुप हो गये,
वो #ख़्बाव सारे #चकनाचूर हो गये...
#जिन्दगी के सफ़र में यूँ #मदहोश हुये,
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मेरी चुप को, मेरी कमज़ोरी मत समझ लेना,
तुम अपने खयालात को, सच मत समझ लेना !
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