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इंसान की
फितरत भी अजीब है:
कल तक किसी को
"अंकल-आंटी" कहो तो
बुरा मान जाता था!
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अब किसी की घात का, अहसास नहीं होता !
ज़ख्मों में उठी टीस का, अहसास नहीं होता !
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यूं बेसबब इतनी ज़िल्लतें, उठाते ही क्यों हो
यूं आँखों को हसीं सपने, दिखाते ही क्यों हो
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