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जर्जर है बुनियाद, तो रंग कराने से क्या होगा,
बेज़ार है गर दिल, तो मुस्कराने से क्या होगा !
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बिता दी हमने यूं ही, ये ज़िन्दगी किस के लिए !
उधार ला कर रख दी, ये रौशनी किस के लिए !
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दुनिया के दिए ज़ख्मों को, सहना ही पड़ता है,
खा कर के ठोकरें भी, हमें चलना ही पड़ता है !
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दिल उछलता है अब भी, उनकी खबर आने पर !
वो भुला देता है दर्द सारे, उनकी खबर आने पर !
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वो मुस्कराये क्या, कि हम आशिक़ी समझ बैठे,
हम तो मौत के सामान को, ज़िन्दगी समझ बैठे
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#दर्द कितना खुश
नसीब है
मिलते ही अपनों की याद दिलाता है,
#दौलत कितनी बद
नसीब है
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न रहीम नज़र आता है, न राम नज़र आता है ,
उसे तो वास्ते पेट के, बस काम नज़र आता है !
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निकल पड़ते हैं जज़्बात, क्या करें
दिल में अटकी है हर बात, क्या करें
उमड़ता रहता है दर्दे दिल अंदर ही,
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