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भेड़ों का इक झुण्ड है जनता, जिसकी अपनी कोई
डगर नहीं
आगे की भेड़ किधर जाती है, इसकी उनको कोई खबर नहीं.
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जिस बस्ती में अंधे रहते हों वहां आईनों की जरूरत कोई नहीं
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पत्थर की है ये दुनिया, यहाँ जज्बातों की कदर नहीं
दिल में मेरे तूफान मचा है, इसकी किसी को #खबर नहीं
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ठाने अगर हम बदलने कि, दिन रात बदल के रख देंगे
अंत हमें क्या बदलेगा, हम शुरुआत बदल के रख देंगे
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कितना है मुझसे प्यार, बस इतना बता दो
कितना है तुम्हें ऐतबार, बस इतना बता दो
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ज़िंदगी तेरे हर कदम पे रोना आया
तेरे सफर की हर
डगर पे रोना आया
कैसे जिया हूँ अब तक ये खुदा जाने,
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कितना कठिन रास्ता है...
कितनी कठिन #
डगर है...
है #इश्क जिसकी #मँजिल...
#मौत उसका वो #सफ़र है....
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कटती है पतंग तो, उसकी कोई
डगर नहीं होती
कहाँ पे जा अटकेगी, किसी को खबर नहीं होती
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किताब ए #इश्क़ में क्या कुछ दफ़्न मिला,
मुड़े हुए #पन्नों में एक भूला हुआ #वादा मिला...
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अपनों की ख़ुशी, दुनिया के ग़म भुला देती है
नेक दिली, एक आदमी को इंसान बना देती है
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