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सुकून मिलता है, जब मुलाक़ात होती है,
वो ज़िन्दगी की, एक हसीन रात होती है !
चले जाते हैं वो छोड़ कर जब साथ मेरा,
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चोर (बन्दूक तानते हुए): ज़िन्दगी चाहते हो
तो अपना पर्स मेरे हवाले कर दो।
आदमी: यह लो।
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अपनी तो ज़िन्दगी का, बस फ़साना बन चुका है,
था दिल के क़रीब जो भी, वो बेगाना बन चुका है !
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हद से ज्यादा खुशी और
हद से ज्यादा गम किसी को मत बताओ ॥
जिन्दगी में लोग हद से ज्यादा खुशी पर “नजर”
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पूछूँगा विधाता से मैं, कि ये कैसा मुकद्दर बना दिया,
न बचा था ठौर कोई, जो आँखों को समंदर बना दिया !
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किसी भी हालात में, जीना आता है हमें,
ग़मों को ज़िगर से, लगाना आता है हमें !
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जो चलाते हैं खंज़र, भला उनका क्या जाता है ,
देख कर दर्द औरों का, उनको तो मज़ा आता है !
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कुछ देखा हुआ सा, कुछ परखा हुआ सा लगता है,
ज़िन्दगी का हर सवाल, उलझा हुआ सा लगता है !
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देखा किया जो मैंने, हर आँख में नमी थी,
मगर मेरी आँख तो, कहीं और ही जमी थी !
हर कोई नज़र आ रहा था मेरे ज़नाज़े में,
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न तो ग़मों का गम है, न ख़ुशी की ख़ुशी हमको !
भट्टी में पका चुकी है खूब, ये ज़िन्दगी हमको !
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