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ग़मों के तूफ़ान भी, टकरा कर चले जाएंगे
हम तो इक दरिया हैं, यूं ही बहते चले जाएंगे
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जिनके लिए ज़िन्दगी, तार तार करते रहे
वो हमारे दिल से सिर्फ, व्यापार करते रहे
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ढूढने से क्या मिलेगा, मेरे इस वीरान घर में
छा गए हैं ग़मों के जाले, मेरे इस वीरान घर में
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अपने वज़ूद को ही, अंधेरों में छुपा लिया हमने
कमज़ोर दिल को, इक पत्थर बना लिया हमने
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कर लिए जतन इतने, अपने आप को बदल के
फिर भी गुज़री #ज़िन्दगी, बस आसुओं में ढल के
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क्या गुज़री है दिल पर, कौन समझता है
किसी और का दर्द, भला कौन समझता है
खो गए
गमों की भीड़ में मेरा #नसीब था,
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जीने से तो यहाँ बेहतर है कि, बस मर जाएँ
मिलते हैं ग़मों से बुझे चहरे, हम जिधर जाएँ
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भूल जाओ यारो, अपने हाथों की लकीरों को
खुद ही बनाना पड़ता है, अपनी तक़दीरों को
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हमारे तो ग़मों का, हर सबब भी वो हैं
हमारी मोहब्बत का, मज़हब भी वो हैं
कितने ही ज़ख्म देलें कोई गिला नहीं,
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हर मुश्किल में, साथ निभाता है दोस्त
हमारे ग़मों को, अपना बनाता है दोस्त
खून के रिश्ते छूट जाते हैं पीछे, मगर
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