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अब ज़िंदगी बनाने का समय आ गया है
अब अरमां सजाने का समय आ गया है
ये ख़बर है कि आने वाले हैं वो शहर में
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अपनों से ज़िंदगी में, जब बेहाल हो गये
हर तरफ से हम, जब फटे हाल हो गये
तलाश लिया ठिकाना हमने अंधेरों में,
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शर्म से
क्या शर्माना यारों,
शर्म तो शर्म वाले को आती है...
हम तो इतने बेशर्म हैं कि..........
शर्म
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उनके लिये भला मैं,
क्या अल्फाज़ कहूँ
उन्हें बेवफा कहूँ, या कि धोखेबाज़ कहूँ
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ज़रूरत नहीं है, किसी को भी ज़ख्म दिखाने की
बड़ी ही दिल फरेब है नज़र, ज़ालिम ज़माने की
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दिल के #दर्द न जाने
क्या क्या बयाँ कर जाते है,
कभी #खामोश #चेहरा तो कभी #अल्फाज़ बयाँ कर #जाते है...
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किसी ने मिट्टी का बना दिया
किसी ने पत्थर का बना दिया
मैंने तो जान बख्शी थी सबको
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आर्मी ट्रेनिंग के दौरान:-
अफसर ने बंता से पूछा : ‘ये हाथ में
क्या है ?’
सुरेश : “सर , बन्दूक है …!”
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अपने दुखड़े, ओरों को सुनाने से
क्या मिलेगा
अपने ज़ख्म, ओरों को दिखाने से
क्या मिलेगा
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कांटे मुझे मिलते रहे, हमेशा ही यार की तरह
चुभन से मिलता रहा, दर्द भी प्यार की तरह
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