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हमने अब गमों को, अपना मुकद्दर बना लिया
अपनी आँखों को
अश्कों का समंदर बना लिया
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हम आँखों से
अश्क ढलने नहीं देते
अरमान दिल से निकलने नहीं देते
दिल भले ही तडपता रहे रात दिन,
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पुरानी #यादों को, सजाने में क्या रखा है
सूखे ज़ख्मों को, सहलाने में क्या रखा है
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हर किसी को #मुस्कराने की, आदत नहीं होती,
हर किसी की #चाहत, पाने की नही होती...
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एहसान करके जताना, ज़रूरी नहीं होता,
#चाहत है कितनी बताना, ज़रूरी नहीं होता !
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क्यों चले आते हैं लोग, यूं ही जी जलाने के लिए !
कर के खुशियों का वादा, उम्र भर रुलाने के लिए !
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अश्क बन कर आँखों से बहते हैं,
बहती आँखों से उनका #दीदार करते हैं,
माना कि #ज़िंदगी मे उन्हे पा नही सकते,
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दुनिया के दिए ज़ख्मों को, सहना ही पड़ता है,
खा कर के ठोकरें भी, हमें चलना ही पड़ता है !
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गुज़रे हुए ज़माने, कभी भुलाये नहीं जाते ,
कभी अपनों से मिले ग़म, बँटाये नहीं जाते !
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यारो ज़िंदगी के सफर में, जलालत कम नहीं है
हर कदम पर फिसलने की, हालत कम नहीं है
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