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आती है याद उनकी, जैसे ही शाम ढलती है !
रोता है दिल, जब सितारों की शमा जलती है !
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सब पूछ रहे हैं #पुरुष दिवस कब है?
अरे #भाई आ रहा है
अपना भी #त्यौहार...
1 मई को
मज़दूर दिवस... :D :P
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कितने मतलबी हैं हम, कि
अपना ही घर देखते हैं !
गर जलता है घर किसी का, तो अपने हाथ सेकते हैं !
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लेते हैं हर चीज़ मेरी,
अपना सामान समझ कर,
जब मांगते हैं हम, तो देते है अहसान समझ कर !
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लोग दिल में घुस कर, चले आते हैं क्यों,
फिर #तमन्ना जगा कर, चले जाते हैं क्यों...
जब साथ जीने की जगती है थोड़ी आशा,
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फरेबियों को तो हम,
अपना समझ बैठे
हक़ीक़त को तो हम, सपना समझ बैठे
मुकद्दर कहें कि वक़्त की शरारत कहें,
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क्या क्या खोया क्या पाया, हमको कुछ भी याद नहीं !
किसने अरमानों को कुचला, हमको कुछ भी याद नहीं !
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अपनी ज़िन्दगी हम, यूं ही बसर कर लेंगे,
अपने दिल में हम, उनके अज़ाब भर लेंगे...
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जीना चाहा तो ज़िन्दगी, दूर होती चली गयी !
कमाल ये कि हर शै, मजबूर होती चली गयी !
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धन तो मिल गया लेकिन, सुकून की दौलत न मिली
घर तो मिला लेकिन हमें, रहने की मोहलत न मिली
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